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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

अध्याय १

शिवजी के सद्योजात, वामदेव, सत्पुरूष, अघोर और ईशान नामक पाँच अवतारों का वर्णन

वन्दे महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम्।

गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराजसमुद्भवं शंकरमादिदेवम्।।

जो परमानन्दमय हैं, जिनकी लीलाएँ अनन्त हैं, जो ईश्वरों के भी ईश्वर, सर्वव्यापक, महान्, गौरी के प्रियतम तथा स्वामिकार्तिक और विघ्नराज गणेश को उत्पन्न करनेवाले हैं, उन आदिदेव शंकर की मैं वन्दना करता हूँ।

शौनकजी ने कहा- महाभाग सूतजी! आप तो (पुराणकर्ता) व्यासजी के शिष्य तथा ज्ञान और दया की निधि हैं अत: अब आप शम्भु के उन अवतारों का वर्णन कीजिये, जिनके द्वारा उन्होंने सत्पुरुषों का कल्याण किया है।

सूतजी बोले- शौनकजी ! आप तो मननशील व्यक्ति हैं अत: अब मैं आपसे शिवजी के उन अवतारों का वर्णन करता हूँ, आप अपनी इन्द्रियों को वश में करके सद्भक्तिपूर्वक मन लगाकर श्रवण कीजिये। मुने! पूर्वकाल में सनत्कुमारजी ने नन्दीश्वर से, जो सत्पुरूषों की गति तथा शिवस्वरूप ही हैं, यही प्रश्न किया था; उस समय नन्दीश्वर ने शिवजी का स्मरण करते हुए उन्हें यों उत्तर दिया था।

नन्दीश्वरने कहा- मुने! यों तो सर्वव्यापी सर्वेश्वर शिव के कल्प-कल्पान्तरों में असंख्य अवतार हुए हैं तथापि इस समय मैं अपनी बुद्धि के अनुसार उनमें से कुछ का वर्णन करता हूँ। उन्नीसवाँ कल्प, जो श्वेतलोहित नाम से विख्यात है, उसमें शिवजी का 'सद्योजात' नामक अवतार हुआ था। वह उनका प्रथम अवतार कहलाता है। उस कल्प में जब ब्रह्मा परब्रह्म का ध्यान कर रहे थे, उसी समय एक श्वेत और लोहित-वर्ण वाला शिखाधारी कुमार उत्पन्न हुआ। उसे देखकर ब्रह्मा ने मन-ही-मन विचार किया। जब उन्हें यह ज्ञात हो गया कि यह पुरुष ब्रह्मरूपी परमेश्वर है, तब उन्होंने अंजलि बाँधकर उसकी वन्दना की। फिर जब भुवनेश्वर ब्रह्मा को पता लग गया कि यह सद्योजात कुमार शिव ही हैं तब उन्हें महान् हर्ष हुआ। वे अपनी सद्‌बुद्धि से बारंबार उस परब्रह्म का चिन्तन करने लगे। ब्रह्माजी ध्यान कर ही रहे थे कि वहाँ श्वेतवर्ण वाले चार यशस्वी कुमार प्रकट हुए। वे परमोत्कृष्ट ज्ञानसम्पन्न तथा परब्रह्म के स्वरूप थे। उनके नाम थे- सुनन्द, नन्दन, विश्वनन्द और उपनन्दन। ये सब-के-सब महात्मा थे और ब्रह्माजी के शिष्य हुए। इनसे वह ब्रह्मलोक व्याप्त हो गया। तदनन्तर सद्योजातरूप से प्रकट हुए परमेश्वर शिव ने परम प्रसन्न होकर ब्रह्मा को ज्ञान तथा सृष्टिरचना की शक्ति प्रदान की। (यह सद्योजात नामक पहला अवतार हुआ।)

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